दिल्ली में 27 साल बाद भाजपा की जीत के मायने, कांग्रेस की भूमिका और आम आदमी पार्टी के खराब प्रदर्शन के कारण

दिल्ली में विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके हैं। दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से भारतीय जनता पार्टी को 48 सीटें मिली हैं जबकि आम आदमी पार्टी को 22 सीटें मिली हैं। वहीं कांग्रेस की बात की जाए तो कांग्रेस दिल्ली विधानसभा चुनावों में लगातार तीसरी बार जीरो सीट लाकर हैट्रिक बनाने में कामयाब रही है।

चुनाव में पार्टियों को मिलने वाले वोट प्रतिशत की बात करें तो भाजपा को इस बार 46.56% वोट मिले हैं जो उसके पिछले विधानसभा चुनाव(2020) की तुलना में 3.6% अधिक है। वहीं आम आदमी पार्टी को इस बार 43.57 % वोट मिले हैं जो पिछले विधानसभा चुनाव में मिले मत प्रतिशत से काफी कम है। वहीं कांग्रेस को इस बार 6.34% वोट मिले हैं जो उसके पिछले विधानसभा चुनाव में मिले 4.3% से अधिक है।

भाजपा ने दिल्ली में एक मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाकर आम आदमी पार्टी के ऊपर कथित भ्रष्टाचार के आरोपों को प्रखरता से उठाया। इसका परिणाम यह हुआ कि पिछले दो विधानसभा चावन में अपने दम पर प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली आप इस बार मात्र 22 सीटों पर सिमट कर रह गई । वहीं कांग्रेस ने भले ही इस चुनाव में एक भी सीट न जीती हो लेकिन आप बना भाजपा दिख रहे इस चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में एवं भूमिका निभाई है।

27 साल बाद राज्य में अपना राजनीतिक वनवास समाप्त कर चुकी भाजपा की जीत कोई समान्य नहीं है बल्कि अपने में कई निहितार्थ समेटे हुए हैं तो आईए जानते हैं कि

दिल्ली में भाजपा की जीत के मायने क्या हैं ?

1)आप के राजनीतिक अस्तित्व का सवाल

आम आदमी पार्टी वही पार्टी है जो इंडिया अगेंस्ट करप्शन मूवमेंट के जरिये दिल्ली की सत्ता में आती है। आम आदमी पार्टी की राजनीतिक लहर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की 2013 और 2015 के विधानसभा चुनाव में इस नई क्षेत्रीय पार्टी ने अपने दम पर दिल्ली में सरकार बनाई थी। लेकिन 2025 विधानसभा चुनाव आते-आते उनकी पार्टी की कट्टर ईमानदार वाली छवि कमजोर पड़ती गई और अरविंद केजरीवाल

समेत उनकी पार्टी के कई बड़े नेता कथित तौर पर भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरते हुए पाए गए। इसका परिणाम यह हुआ कि आम आदमी पार्टी जहां से उसने अपने राजनीतिक अस्तित्व को पाया वह ही उससे छिन गया।

2) मोदी लहर अभी भी बाकी है

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के परिणामों ने यह सिद्ध किया कि प्रधानमंत्री मोदी की प्रभावशीलता अभी भी बरकरार है लोकसभा चुनाव में भाजपा के कमतर प्रदर्शन से प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और प्रभावशीलता पर सवालिया निशान उठाए गए थे। क्योंकि भाजपा ने दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा था भाजपा दिल्ली की जनता को यह विश्वास दिलाने में सफल रही कि प्रधानमंत्री मोदी राज्य में किए गए सभी चुनावी वादों को समय से पूरा करेंगे जिसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा ने यह चुनाव जीत भी लिया। जो राज्य की जनता में प्रधानमंत्री मोदी की प्रभावशीलता को दर्शाता है।

3) स्थानीय नेतृत्व का उदय

बीजेपी पिछले चुनावों में दिल्ली में कोई मजबूत स्थानीय नेता पेश नहीं कर पाई थी। यह स्थिति इस चुनाव में भी बनी रही लेकिन अब 2025 में पार्टी जीती है, तो इसका मतलब होगा कि वह राज्य में एक प्रभावी और मजबूत नेतृत्व तैयार करेगी जो आगामी चुनाव में एक राज्य स्तर के एक मजबूत नेता की कमी और प्रधानमंत्री मोदी पर अत्यधिक निर्भरता को कम करने का काम करेगा।

4) फ्रीबी कल्चर का असर कम हुआ

भाजपा की छवि अमूमन ऐसी है कि वह कम फ्रीबी वाली योजनाओं के जरिए चुनाव लड़ने में विश्वास रखती है। लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 इस बात का उदाहरण बनेगा कि भाजपा भी सत्ता हासिल करने के लिए अपने सिद्धांतों से भी मुख मोड़ सकती है। इस चुनाव में भाजपा ने भी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की तर्ज पर खूब सारी लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा की। सत्तारूण आप का वोट बैंक का आधार यह योजनाएं ही थी। लेकिन इस बात से भी किनारा नहीं किया जा सकता कि इस बार यह फ्रीबी योजनाएं जनता को इतना प्रभावित नहीं कर सकी और दिल्ली की जनता ने भाजपा को लॉन्ग-टर्म विकास और प्रशासनिक दक्षता को प्राथमिकता दी।

5) हिंदू वोटों का ध्रुवीकरदी

दिल्ली में सी.ए.ए - एन.आर.सी. शाहीन बाग, और हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण जैसे मुद्दे चर्चा में रहे हैं। हिंदू वोटों का एकतरफा बीजेपी की ओर जाना हो सकता है भी भाजपा की जीत के मायने के रूप में देखा जा रहा है। दिल्ली की मुस्तफाबाद सीट इस बात का उदाहरण है। मुस्तफाबाद विस सीट में लगभग 52% हिंदू और 48% मुस्लिम आबादी है। अक्सर हिंदू वोट के बटने का संकट रहता है लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ और बीजेपी उम्मीदवार मोहन सिंह बिष्ट इस विस सीट से जीत हासिल करते हैं।

6) केंद्र और राज्य की एकजुटता

दिल्ली में केंद्र सरकार के साथ साथ राज्य सरकार भी शासन प्रशासन को संभालती है। तो ऐसे में कई बार आप की राज्य सरकार और केंद्र की भाजपा सरकार के बीच संतुलन की स्थिति देखी गई थी। इस हस्तक्षेप से राज्य के विकास कार्य प्रभावित होते थे। अब राज्य और केंद्र दोनों में भाजपा सरकार आने से इस स्थिति में सुधार होगा। जनता ने शायद बीजेपी को इसलिए भी वोट दिया होगा ताकि केंद्र और राज्य की टकराहट खत्म हो और उन्हें बेहतर प्रशासन मिले।

कांग्रेस की भूमिका

कांग्रेस, जिसने 1998 से 2013 तक दिल्ली में लगातार 15 वर्षों तक शासन किया था, 2013 के बाद से लगातार तीन विधानसभा चुनावों में एक भी सीट जीतने में असफल रही है। 2013 में आम आदमी पार्टी के उदय के बाद से कांग्रेस का जनाधार लगातार घटता गया है। कांग्रेस एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाई और उसका वोट शेयर लगभग 6.86% रहा। दिल्ली विधानसभा चुनाव के एलेनु की शुरुआत में कांग्रेस जो अपनी प्रतिद्वंद्वी आप और भाजपा से पिछड़ती हुई दिख रही थी लेकिन चुनाव के अंत तक आते-आते काफी जबरदस्त तरीके से प्रचार में उतरी जिससे उसने चुनाव को त्रिकोणीय बनाने में अहम भूमिका निभाई।

आम आदमी पार्टी सरीके बड़े नेता जैसे अरविंद केजरीवाल खुद और सौरभ भारद्वाज, मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन की हार में कांग्रेस प्रत्याशियों के चुनावी मैदान में होने से वोटों का बटवारा एक अहम कारण रहा। इन सभी नेताओं की सीटों पर नजर डालें तो कांग्रेस उम्मीदवारों ने काफी हद तक मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में अहम भूमिका निभाई। जिससे आप का वोट कुछ हद तक कांग्रेस के हिस्से आ गया और इस वोट के बंटवारे से भाजपा को फायदा मिला। पिछले दो विधानसभा विधानसभा चावन की तुलना में आम आदमी पार्टी के लिए यह चुनाव आसान नहीं था। वहीं इस चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार के कारण की बात करें तो वह निम्नलिखित कारण हो सकते हैं।

आम आदमी पार्टी के खराब प्रदर्शन के कारण

1)भ्रष्टाचार के आरोप

आम आदमी पार्टी पर शराब घोटाले ,सीएम हाउस का रिनोवेशन समेत कई भ्रष्टाचार के कथित आरोप लगे। जो इस चुनाव में पार्टी की हार का एक सबसे बड़ा कारण रहा। आप के प्रमुख नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे खुद अरविंद केजरीवाल समेत मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन, सौरभ भारद्वाज जैसे नेता चुनाव हार गये। आप के नेताओं के खिलाफ कानूनी कार्यवाही और जेल जाने की घटनाओं ने पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया। जिसका खामियाजा आप को इस चुनाव में भुगतना पड़ा।

2) वादों की पूर्ति में कमी

पार्टी द्वारा किए गए वादों, जैसे दिल्ली को पेरिस बनाने, पानी की आपूर्ति सुधारने, यमुना की सफाई और मोहल्ला क्लीनिक के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, को पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका, जिससे जनता में असंतोष बढ़ा।

3)आंतरिक कलह और नेतृत्व का अभाव

पार्टी के कई प्रमुख नेताओं के इस्तीफे और आंतरिक विवादों ने संगठन को कमजोर किया, जिससे चुनावी प्रदर्शन पर असर पड़ा। चुनाव से पहले भी आम आदमी पार्टी के कई विश्वासी नेता या तो कांग्रेस का हाथ थामते गए या बीजेपी की तरफ जाते गये जिस पार्टी का आंतरिक ढांचा कमजोर हुआ और भाजपा को राज्य में बढ़त बनाने का मौका मिला।

4) विकास कार्यों में कमी

दिल्ली में अपेक्षित विकास कार्यों की कमी और केंद्र सरकार के साथ लगातार टकराव ने भी पार्टी की छवि को प्रभावित किया। जिसे जनता को राज्य में केंद्र की भांति भाजपा की सरकार बनाने के लिए प्रभावित किया जिससे राज्य और केंद्र के बीच कम से कम टकराव हों और विकास कार्य समय रहते पूरे किए जा सकें।

निष्कर्ष

दिल्ली चुनाव 2025 बेहद खास रहा जिसमें कई संदेश राजनीतिक पार्टियों को मिले। दिल्ली की जनता ने यह जवाब दिया कि केवल चुनावी रेवड़ियां ही चुनाव नहीं जीतती बल्कि जनता से किए गए वायदे पूरे करने पर ही जनता चुनाव में जीत की गारंटी देती है। यह केवल चुनाव जीतने में कुछ हद तक सहायक की भूमिका निभा सकती हैं लेकिन असल में जनता से जुड़े मुद्दें ही प्रभावी साबित होते हैं। जो चुनावी जीत का रास्ता प्रशस्त करते हैं।

Write a comment ...

Write a comment ...