1 जुलाई का दिन भारत की न्यायिक व्यवस्था में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा क्योंकि इस दिन भारत को अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे तीन कानून से मुक्ति मिल जायेगी,भारत ने इन तीन नये कानूनों को अपनी वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप और बेहतर बनाया है यह तीन नए कानून त्वरित न्याय पर केंद्रित होंगे,पूरी कोशिश की गई है कि जल्द से जल्द न्याय को सुनिश्चित किया जा सके और तारीक पे तारीक वाली व्यवस्था से छुटकारा पाया जा सके क्योंकि अंग्रेजों द्वारा बनाए गए यह तीन कानून दंड व्यवस्था पर ज्यादा केंद्रित थे लेकिन अब इन नियमों में बेहतर बदलाव करके इन्हें त्वरित न्याय पर केंद्रित किया गया है जो वर्तमान भारत की एक बड़ी जरूरत भी है।
समझते हैं कि आखिर यह नए नियम पुराने नियमों से किस तरह अलग है .?
1.समय सीमा (टाइमलाइन)
नए नियमों में जल्द से जल्द न्याय सुनिश्चित हो सके इसके लिए टाइमलाइन को जोड़ा गया इन तीनों ही नियमों में कुल 35 जगह टाइमलाइन को जोड़ा गया है ताकि अपराधिक ट्रायल को गति मिल सके इस टाइम लाइन के दायरे में पुलिस सहित न्यायालय को भी शामिल किया गया है ,शिकायत मिलने से लेकर चाहे दस्तावेज दाखिल करने हो, न्यायालय द्वारा संज्ञान लेना हो, जांच पूरी करनी हो या फैसला सुनाना हो इन सभी को एक निश्चित समय सीमा में बांध दिया गया। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (BNSS) की मुख्य टाइमलाइन निम्नलिखित है।
० शिकायत मिलने पर पुलिस को 3 दिन के अंदर प्राथमिकी(FIR) दर्ज करनी होगी।
० मजिस्ट्रेट को 14 दिन के भीतर केस का संज्ञान लेना होगा ।
० 3 से लेकर 7 साल तक की सजा के केस में पहले 14 दिन की प्रारंभिक जांच पूरी की जाएगी उसके बाद FIR दर्ज होगी ।
० 10 साल या इससे अधिक सजा वाले अपराध में पुलिस आरोपी को प्रथम 60 दिन तक रिमांड पर ले सकेंगी पहले 15 दिन की रिमांड का प्रावधान था ।
० 10 साल से कम सजा वाले अपराध में पुलिस आरोपी को 40 दिन की डिमांड पर ले सकेगी पहले 15 दिन की रिमांड का प्रावधान था ।
० दुष्कर्म के मामले में 7 दिन के भीतर पीड़िता की चिकित्सा रिपोर्ट संबंधित पुलिस थाने और संबंधित कोर्ट में भेजी जाना अनिवार्य होगी ।
० पहली सुनवाई की तारीख से कम से कम 60 दिन के अंदर आरोप तय करना अनिवार्य होगा ।
० आरोप पत्र दाखिल करने के लिए भी टाइमलाइन तय की गई है यह पहले की तरह 60 और 90 दिन की है लेकिन अब 90 दिन के बाद जांच जारी रखने के लिए कोर्ट से इजाजत लेनी होगी कुल मिलाकर कोई केस 180 दिनों से ज्यादा लंबित नही रखा जा सकता ।
० अंतिम सुनवाई के बाद अधिकतम 30 दिन में फैसला सुनाना होगा विशेष कारण के चलते यह फैसला 15 दिन तक टाला जा सकता है ।
० प्ली बार्गेनिंग की भी समय सीमा तय की गई है ,अगर आरोप तय होने के 30 दिन के भीतर आरोपित गुना स्वीकार कर लेता है तो सजा कम हो जाती है पहले सीआरपीसी में इसकी कोई समय सीमा नहीं थी ।
2. आधुनिक तकनीक का भरपूर इस्तेमाल
० इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के जरिए शिकायत ,समन और गवाही को बढ़ावा दिया गया है।
० गवाहों के लिए ऑडियो , वीडियो से बयान रिकॉर्ड करने का विकल्प उपलब्ध होगा।
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