1. महात्मा गांधी 2.पोट्टी श्रीरामुलु 3.इरोम शर्मिला 4.अन्ना हजारे 5.सोनम वांगचुक
खबर
पिछले 46 दिनों से भी ज्यादा समय से संयुक्त किसान मोर्चा के प्रमुख जगजीत सिंह डल्लेवाल , पंजाब और हरियाणा के खनौरी बॉर्डर पर आमरण अनशन पर बैठे हैं।नए कृषि कानून के विभिन्न प्रावधानों में किसानों के हित को देखते हुए बदलाव और निश्चित एमएसपी जैसी अपनी मांगों को मनबाने के लिए उनका यह अनशन जारी है।
अनशन के दौरान अस्वस्थ अवस्था में किसान नेता डल्लेवाल
ऐसे में यह बेहद दिलचस्प है कि भूखहड़ताल कैसे अभिव्यक्ति की आजादी को व्यक्त करने के लिए एक लोकतांत्रिक,संवैधानिक,शांतिपूर्ण ,अहिंसक विकल्प के रूप में उभरा है । भूख हड़ताल जो व्यक्तिगत स्वायत्तता को दर्शाती है और लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने को संरेखित करती है। भारतीय राजनीति में भूख हड़ताल का एक लंबा इतिहास रहा है। न केवल स्वतंत्रता से पहले बल्कि स्वतंत्रता के बाद भी। कई लोगों ने भूख हड़ताल के जरिए सरकार की नीतियों के प्रति अपनी असहमति व्यक्त कर, कई बड़े राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों को सफल बनाया है।
इस लेख में हम इसी गांधीवादी विरोध प्रदर्शित करने के तरीके भूखहड़ताल और इसे किन लोगों ने आगे चलकर शक्ति दी जैसे विषय पर बात करेंगे।
महात्मा गांधी :- महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा के सबसे बड़ी समर्थक को में से एक थे और इन्हीं मूल्यों को उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में समाहित भी किया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में हम पाते हैं कि जब महात्मा गांधी ने इस स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व संभाला तो विरोध प्रदर्शित करने के रूप में अहिंसा,शांतिपूर्वक जैसे गुण युक्त भूखहड़ताल को ज्यादा तबज्जो दी गई। महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह , नमक सत्याग्रह जैसे छोटे बड़े लगभग 20 से ज्यादा ऐसे ही विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया था। जिसमें वह अपनी माँगों की स्वीकृति तक अनशन पर बैठे थे।
पोट्टी श्रीरामुलु :- श्रीरामुलु महात्मा गांधी के अनुयायियों में से एक है जिन्होंने महात्मा गांधी के साथ नमक सत्याग्रह से लेकर दांडी यात्रा तक में सहभाग किया था। और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी थी।
आंध्र प्रदेश के नेल्लोर के मूलापेटा में वेणुगोपाल स्वामी मंदिर में दलितों के प्रवेश के समर्थन में उपवास से लेकर भाषा के आधार पर नए राज्य "आंध्र प्रदेश" की मांग के लिए 58 दिनों के अनशन ने तत्कालीन नेहरू सरकार को हिलाकर रख दिया था और अंततः नेहरू को भाषा के आधार पर उनकी मृत्यु के चार दिन बाद एक नया राज्य आंध्र प्रदेश बनाना पड़ा था। यही वजह है की पोट्टी श्रीरामुलु को आंध्र प्रदेश और पूरे भारत में अमरजीवी के रूप में काफी सम्मान भाव से याद किया जाता है।
इसी तरह कहीं और उदाहरण पर नजर डालें तो नाम आता है जतिन दास का, जिन्होंने राजनीतिक नतीजे के साथ वांछनीय व्यवहार को सामने लाने के लिए लगभग 63 दिनों तक भूख हड़ताल की थी इसके कारण उनकी मृत्यु भी हो गई थी । इसी फेहरिस्त में महान क्रांतिकारी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त का भी नाम शामिल है जिन्होंने जेल की खराब हालत का विरोध करने , जनता का व्यापक समर्थन पाने और इस विषय पर मीडिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए भूख हड़ताल का सहारा लिया था।
आजादी के बाद के कुछ उदाहरण :-
इरोम शर्मिला :- सामाजिक, भारतीय नागरिक अधिकार कार्यकर्ता है। इरोम शर्मिला का संबंध मणिपुर से है। इरोम ने मणिपुर में सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम 1958 (AFSPA- 1958) के खिलाफ 16 साल (2000- 2016) तक भूख हड़ताल की थी। आखिरकार जब इतने लंबे विरोध प्रदर्शन के बाद मणिपुर सरकार इस कानून में कुछ परिवर्तन करने के लिए राजी हुई तब इरोम ने 2016 में अपना अनशन थोड़ा था। शर्मिला के नाम दुनिया में सबसे लंबी अवधि तक भूख हड़ताल करने का भी विश्व रिकॉर्ड है।
अन्ना हजारे :- अन्ना हजारे एक भारतीय समाज से भी है जिन्होंने एक सशक्त लोकपाल विधेयक के निर्माण की माँग पर सरकारी निष्क्रियता के विरोध में 2011 में आमरण अनशन शुरु कर दिया था। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी इस मुहिम में अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, प्रशांत भूषण, बाबा रामदेव एवं अन्य अनेक प्रसिद्ध समाजसेवी तक शामिल थे। अन्ना हजारे ने ही सूचना के अधिकार को प्रत्येक भारतीय नागरिक तक पहुंचाने की इस मुहिम की शुरुआत की थी। जो 2005 में एक कानून के रूप में सरकार हुआ।
सोनम वांगचुक :- सोनम वांगचुक जो एक भारतीय समाजसेवी है। और पिछले कई सप्ताह से लद्दाख को एक पूर्ण राज्य और संविधान की अनुसूची 6 में शामिल कराने के लिए भारत की राजधानी दिल्ली में आमरण अनशन कर रहे हैं।
मनोज जरांगे पाटिल :- मनोज जरंगे पाटील महाराष्ट्र के एक बड़े नेता है। जो मराठा समुदाय से संबंध रखते हैं। पाटिल अन्य पिछड़ा वर्ग के खाते के आरक्षण में से मराठा समुदाय के आरक्षण की मांग को पूरा कराने के लिए भूख हड़ताल पर बैठे हुए दिखाई दिए थे।
देखा जाए तो अभिव्यक्ति की आजादी का उपयोग करते हुए शांतिपूर्वक और लोकतांत्रिक तरीके से विरोध प्रदर्शन करने के इस पुराने तरीके की प्रासंगिकता आधुनिक भारत में भी बनी हुई है। जहां नेता भूख हड़ताल के जरिए अपनी असहमति व्यक्त करते हैं। और सरकार को लोकतंत्र में जनता की शक्ति का अनुभव करते हैं।
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